ज्ञानवापी मस्जिद केस पर वाराणसी अदालत का अहम फैसला, जानिए अब तक क्या-क्या हुआ?
वाराणसी की जिला अदालत ज्ञानवापी परिसर में मां श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए आज अपना फैसला सुनाने वाली है। ज्ञानवापी परिसर में मां श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन पूजन को लेकर दायर याचिका को लेकर फैसले में तय हो जाएगा कि कोर्ट में दायर मामला सुनने योग्य है या नहीं। पांच महिलाओं ने याचिका दायर कर हिंदू देवी-देवताओं की दैनिक पूजा की अनुमति मांगी थी, जिनकी मूर्तियां ज्ञानवापी मस्जिद की बाहरी दीवार पर स्थित हैं।
इससे पहले जिला न्यायाधीश एके विश्वेश ने पिछले महीने 24 अगस्त को सभी दलीले सुनने के बाद अपने फैसले को 12 सितंबर तक के लिए सुरक्षित रख लिया था। इस फैसले को देखते हुए जहां वाराणसी पुलिस अलर्ट मोड पर है। इलाके में सुरक्षा के मद्देनजर धारा 144 लागू कर दी गई है। ऐसे में जानिए इस केस में अब तक क्या-क्या हुआ?
मामले में 21 दिनों तक चली बहस के बाद अदालत अपना आज अहम फैसला सुनाएगी, जिसमें तय हो जाएगा कि आखिर ज्ञानवापी मामले में दायर याचिका सुनवाई के योग्य है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने केस को वाराणसी कोर्ट को सौंपा
मई में सुप्रीम कोर्ट ने मामले को वाराणसी के जिला अदालत को सौंप दिया, इसे निचली अदालत से स्थानांतरित कर दिया, जहां उस समय तक सुनवाई हो रही थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जिला अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही है। इससे पहले एक निचली अदालत ने परिसर के वीडियोग्राफी सर्वेक्षण का आदेश दिया था।
मस्जिद के सर्वे का काम 16 मई को पूरा हुआ और 19 मई को कोर्ट में रिपोर्ट पेश की गई। हिंदू पक्ष ने निचली अदालत में दावा किया था कि ज्ञानवापी मस्जिद-श्रृंगार गौरी परिसर के वीडियोग्राफी सर्वेक्षण के दौरान एक शिवलिंग मिला था, लेकिन मुस्लिम पक्ष ने इसका विरोध किया था।
हिंदू पक्ष ने शिवलिंग बताया, मुस्लिम पक्ष का दावा वो फव्वारा
19 मई को जिला अदालत में पेश की गई ज्ञानवापी सर्वे की रिपोर्ट के दौरान हिंदू पक्ष ने मस्जिद में शिवलिंग मिलने का दावा किया था, जबकि मुस्लिम पक्ष ने उसे फव्वारा बताया था। इसके बाद पूरे देश में यह मामला गर्मा गया। मस्जिद के अंदर इस वीडियोग्राफी को ज्ञानवापी मस्जिद समिति ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
पूजा स्थल अधिनियम का दिया हवाला
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि फिल्मांकन 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के खिलाफ है, जो 15 अगस्त 1947 तक किसी भी पूजा स्थल की धार्मिक स्थिति को बनाए रखता है। मस्जिद समिति ने तर्क दिया था, “इस तरह की याचिकाओं और मस्जिदों को सील करने से सांप्रदायिक विद्वेष पैदा होगा, देश भर की मस्जिदों पर असर पड़ेगा।”