NATO प्लस क्या है, जिसमें भारत को शामिल करने की उठी मांग, क्या चीन को काउंटर करने के लिए बनना चाहिए हिस्सा?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस महीने अमेरिका की राजकीय यात्रा पर जाने वाले हैं और उससे पहले अमेरिका की शक्तिशाली कांग्रेस समिति ने भारत को शामिल करके नाटो प्लस को मजबूत करने की सिफारिश की है।
भारत को नाटो प्लस में शामिल करने की मांग और नाटो संगठन को लेकर भारत की बड़ी दुविधा रही है और भारत के लिए नाटो में शामिल होना या नहीं होना, काफी जटिल फैसला रहा है। लिहाजा, आईये समझते हैं, कि नाटो प्लस क्या है, इसमें भारत को शामिल करने की मांग क्यों हो रही है और क्या भारत को इसका हिस्सा बनना चाहिए?
नाटो प्लस को समझिए
नाटो प्लस में अभी ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, इजरायल और दक्षिण कोरिया हैं, जिसे अमेरिका ने बनाया है। अमेरिका बहुत जल्द नाटो का एक ऑफिस जापान में खोलने जा रहा है, जिसका मकसद चीन की आक्रामकता को काउंटर करना है।
चीन की तरफ से नाटो प्लस को लेकर काफी सख्त प्रतिक्रियाएं दी जा रही हैं, लेकिन अमेरिका कोशिश कर रहा है, कि भारत भी नाटो प्लस का हिस्सा बना। ये एक पूरी तरह से सुरक्षा व्यवस्था है, जिसका उद्येश्य सामरिक है और ये अमेरिका के नेतृत्व में वैश्विक रक्षा सहयोग को बढ़ाता है।
नाटो प्लस को एक तरह से मुख्य नाटो का ही विस्तार समझ सकते हैं, जिसके अब 31 सदस्य हो चुके हैं। हाल में फिनलैंड भी नाटो का सदस्य बन चुका है और स्वीडन को नाटो का हिस्सा बनाने के लिए अमेरिका जी-तोड़ कोशिशें कर रहा है।
भारत को क्या फायदे होंगे?
भारत अगर नाटो प्लस का हिस्सा बनता है, तो नाटो प्लस के 6 सदस्य हो जाएंगे और इसके बाद भारत को दुनियाभर से खुफिया जानकारियां हासिल होने लगेंगी, जो भारत की सुरक्षा के लिए लिहाज से ऐतिहासिक होगा।
इसके अलावा, नाटो प्लस बनने के बाद भारत बिना किसी देरी को उन अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी तक अपनी पहुंच प्राप्त कर सकेगा, जिसे फिलहाल हासिल करना अत्यंत मुश्किल है।
नाटो प्लस का सदस्य बनना, संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत की रक्षा साझेदारी को और मजबूत करेगा।
अमेरिका की कांग्रेस समिति ने कहा है, कि ‘भारत को अगर नाटो प्लस का हिस्सा बनाया जाता है, तो फिर हिंद प्रशांत क्षेत्र में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चायना की आक्रामकता को रोकने और ग्लोबल सिक्योरिटी को मजबूत करने में अमेरिका और भारत के बीच की साझेदारी मजबूत होगी।’
माना जा रहा है, कि नाटो प्लस में भारत के शामिल होने को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान अमेरिका और भारत के बीच बातचीत हो सकती है, खासतौर पर अमेरिका तो यही चाहता है।
अमेरिका ने कहा है, कि चीन को काउंटर करने के लिए उसे अपने सभी सहयोगियों की जरूरत है, लेकिन सवाल ये है, कि क्या भारत किसी सैन्य गुट में शामिल होगा?
भारत का रूख क्या रहा है?
भारत अभी तक दुनिया के किसी भी सैन्य गुट का हिस्सा नहीं है। इतना ही नहीं, जिस क्वाड को जापान और ऑस्ट्रेलिया एक सैन्य समूह बताते हैं, उसे भारत ने अभी तक सैन्य समूह नहीं कहा है।
भारत ने हमेसा से QUAD को एक असैन्य समूह कहकर ही संबोधित किया है और इंडो-पैसिफिक में फ्री नेविगेशन और दुश्मनी भरी प्रतियोगिता से अलग हटकर विकास के लिए काम करने वाला संगठन कहा है। इसके साथ ही, भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन का अगुआ भी रहा है, लिहाजा भारत अपने इस स्टैंड को छोड़ना नहीं चाहता है।
लेकिन, अगर भारत नाटो प्लस में शामिल होता है, तो फिर भारत का गुट निरपेक्ष स्टैड खत्म माना जाएगा और भारत खुलकर अमेरिका के गुट में शामिस हो जाएगा, जिससे भारत की रूस के साथ दोस्ती खतरे में पड़ जाएगी, क्योंकि नाटो प्लस सिर्फ चीन को ही नहीं, बल्कि रूस को भी काउंटर करता है।
इसके अलावा, नाटो संगठन, जिसका मूल ही यही है कि एक देश पर आक्रमण की स्थिति में, नाटो के सभी सदस्य देश आक्रमणकारी देश पर एक साथ हमला करेंगे, उसमें फिर भारत को भी शामिल होना पड़ेगा।
भारत ने हमेशा से युद्ध का विरोध किया है और भारत का आधिकारिक स्टैंड हमेशा से संघर्ष के खिलाफ रहा है, लेकिन अमेरिका, जो बार बार युद्ध में शामिल होता रहता है, अगर भारत भी नाटो प्लस का हिस्सा बनता है, तो फिर भारत को भी अमेरिका के युद्धों में शामिल होना पड़ेगा और ये भारत के लिए काफी महंगा सौदा बनता है और भारत के कई देशों के साथ अच्छे संबंध को खराब कर सकता है। लिहाजा, नाटो प्लस में भारत के शामिल होने को लेकर कई तरह की जटिलताएं हैं और भारत के लिए ये फैसला आसान नहीं होने वाला है।