शिक्षक दिवस पर खाश……..
जज्बा हो तो संसाधनों की कमी भी नही रोक पाती है इंसान की सफलता और लक्ष्य को…..
यह कहानी है एक ऐसे युवा की, जिनका नाम आनंद कुमार है, जिसने अपने गांव के शिक्षा सिस्टम में सुधार करने के लिए अद्वितीय कदम उठाया। आनंद का जन्म मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के विक्रमापुरा पंचायत में हुआ और वे ददोलपुरा गांव में रहते है। ददोलपुरा गांव की दूरी पन्ना से 35 किलोमीटर की है, और यहां आदिवासी समुदाय के बहुत सारे परिवार रहते है।
पंचायत मुख्यालय से 1 किलोमीटर की दूरी पर गांव बसा हुआ है, जहां बरसात के मौसम में लोगों को एक छोटी सी पगडंडी से गुजरना पड़ता है। बरसात के महीनों में, बच्चों को स्कूल जाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। ददोलपुरा गांव में सिर्फ 5वीं तक की शिक्षा मिलती है और बच्चों को आगे की पढ़ाई के लिए विक्रमपुर पंचायत स्कूल जाना होता है।
लेकिन वहां भी संतोषप्रद शिक्षा नही मिल पाती है तब इस समस्या से समुदाय के लोगों ने प्रशासन को अवगत कराया।
यहीं पर आनंद कुमार की कहानी शुरू होती है। वे अपनी कॉलेज की पढ़ाई कर रहे है, लेकिन उन्होंने यह देखा कि उनके गांव के बच्चों को शिक्षा की आवश्यकता है और वे उनकी इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए कुछ कर सकते हैं।
2020 में, उन्होंने अपने घर में समुदाय शिक्षण सेंटर खोल दिया और रोज़ शाम को करीब 50 बच्चों को पढ़ाने लगे। वे न केवल अकेले पढ़ाते थे, बल्कि उन्होंने बच्चों को विभिन्न खेल विधियों, चित्रकला, और अन्य रचनात्मक गतिविधियों के माध्यम से शिक्षा देते आ रहे है। आनंद की यह छोटी सी प्रयास से गांव के बच्चों की शिक्षा में महत्वपूर्ण सुधार हुई है।
वे न केवल शिक्षा सामग्री जुटाने में सहायक रहे, बल्कि उन्होंने एक प्रेरणादायक शिक्षक के रूप में बच्चों के जीवन में बदलाव लाने के प्रयास किये है जो आज भी बदस्तूर जारी है। इसके माध्यम से वे न केवल पढ़ लिख रहे है बल्कि रचनात्मक सोच और समृद्धि की ओर बढ़े रहे है।आनंद कुमार ने अपने गांव के शिक्षा के स्तर को ऊंचा किया और उसके बच्चों के लिए नए दरवाजे खोले। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि यदि कोई अपने संघर्षों के बावजूद अच्छी दिशा में कदम बढ़ाता है तो वह अपने समुदाय के लिए बड़ा बदलाव ला सकता है…..
लेख – लोकेश हरदा (मध्यप्रदेश)