हाईकोर्ट में एनटीपीसी ने दिया हलफनामा,एनटीपीसी ने माना अतिक्रमणकारियों को दिया मुआवजा
हाईकोर्ट के निर्देश के बाद सीबीआई और राज्य सरकार ने नही दिया जवाब
हज़ारीबाग़ – हज़ारीबाग़ में एसआईटी जांच में अनुमानित तीन हजार करोड़ के भूमि-मुआवजा घोटाले और एनटीपीसी द्वारा तीन सौ करोड़ मुआवजा बांटने के मामले में झारखंड हाईकोर्ट में मंटू सोनी द्वारा दायर जनहित याचिका पर एनटीपीसी की तरफ से जवाब दाखिल किया गया है। मंटू सोनी के अधिवक्ता अभिषेक कृष्ण गुप्ता को जवाब में एनटीपीसी ने अतिक्रमणकारियों को मुआवजा वितरण करने की बात स्वीकार कर लिया है। हालांकि उसने इसके लिए सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों के अनुमोदन से मुआवजा बांटने की बात कही है लेकिन कितने अतिक्रमणकारियों को किस दर पर कितना मुआवजा बांटा गया उसका कोई विवरण एनटीपीसी ने नही दिया है । अतिक्रमणकारियों की सूची किसने बनाई उसका सत्यापन कैसे किया गया उसकी कोई जानकारी उपलब्ध नही कराई गई है। जबकि देवाशीष गुप्ता की अध्यक्षता वाली एसआईटी जांच में अतिक्रमणकारियों की पहचान-सत्यापन और मुआवजा वितरण की प्रक्रिया पर सवाल उठाया गया था। वहीं हाईकोर्ट द्वारा पिछले तीन सुनवाई से राज्य सरकार और सीबीआई को जवाब देने के निर्देश के बाद भी अभी तक उनके द्वारा जवाब दाखिल नही किया गया है।
*एसआइटी ने जो गड़बड़ी पायी थी*
■ फरजी दस्तावेज के सहारे 3000 एकड़ जमीन की जमाबंदी करा कर मुआवजा दिया गया
■ सरकार ने जमीन अधिग्रहण की दर 10 लाख रुपये प्रति एकड़ तय की थी
■ सरकार के स्तर पर कोई आदमी इस स्थिति में नहीं है, जो यह बता सके कि जमीन के संबंध में रजिस्टर में जो इंट्री की गयी है, वह सही है या नहीं
■ रजिस्टर दो में सिर्फ जमींदारी के – सामान्य कागजात के आधार पर नाम की इंट्री कर ली गयी. बहुत सारी जमीन, जो खतियान में जंगल झाड़ी के रूप में दर्ज है, उसे भी लोगों ने अपने नाम पर दिखा दिया
■ विना सक्षम पदाधिकारी के स्थानीय स्तर की बैठक में भी गैर रैयतों को ‘सहायता देने का फैसला लिया गया, जो नियम विरुद्ध है
■ जंगल में खासमहल की जमीन की बंदोबस्ती संदेहास्पद है
सरकार के स्तर पर नियमों का उल्लंघन करते हुए कई कार्यपालक आदेश जारी किये गये
■ इस बात का कोई स्पष्ट दिशा- निर्देश नहीं जारी किया गया है कि अगर वित्तिय गड़बड़ी हुई तो कौन जिम्मेदार होगा
■ क्षेत्र में आम धारणा है कि एनटीपीसी ने पकड़ी – बरवाडीह के मामले में नियम-कानून को छोड़ कर हर चीज पैसे के सहारे हासिल करने की कोशिश है।
सरकारी जमीन पर कब्जा दिखा कर
बड़े पैमाने पर की गयी जमाबंदी
डीसी और सीओ कार्यालय ने जमीन अधिग्रहण संबंधी आंकड़े पर जतायी अनभिज्ञता
2004 से शुरू हुई गड़बड़ी
एसआइटी की जांच रिपोर्ट के अनुसार, रजिस्टर- दो में फरजी तरीके से हजारों एकड़ जमीन की ज यह काम 2004 से ही शुरू हो गया था, जब एनटीपीसी को बड़कागांव में कोल ब्लॉक आवंटित किया गया ।
सीओ ने बताया, वरीय अधिकारियों का दबाव था
रिपोर्ट में कहा गया है कि सिर्फ एक सीओ का कार्यकाल एक साल से अधिक समय का रहा, जो अब दूसरे प्रखंड में पदस्थापित है, जहां एनटीपीसी के दूसरे कॉल प्रोजेक्ट का काम चल रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक इसी सीओ ने अपने कार्यकाल में बड़ी संख्या में लाभुकों की सूची का सत्यापन किया. सीओ ने अपने हस्ताक्षर के साथ तारीख भी आंकत नहीं की है. रिपोर्ट के अनुसार, 26 अगस्त 2016 को वह सीओ जांच कमेटी के कार्यालय में उपस्थित हुए. अपने बयान में बताया कि उन्होंने कभी भी मन का निरीक्षण नहीं कि एनटीपीसी की ओर से उपलब्ध करायी जानेवाली सूची पर दस्तखत कर देते थे, सीओ ने बयान में कि इसके लिए उन पर वरीय अधिकारियों का था ऐसा कि एक बार उनके चार माह के वेतन पर रोक लगा दी गयी थी.
छह साल में 11 सीओ की पोस्टिंग
जब रिपोर्ट में कहा गया है कि बड़कागांव सीओ कार्यालय ने पोस्ट ऑफिस की तरह काम किया. वहां के सीओ का औसत कार्यकाल बमुश्किल एक साल का रहा. वर्ष 2009 से 2015 के बीच 11 सीओ की पोस्टिंग की गयी. रिपोर्ट में कहा गया है कि यह देखनेवाली बात है कि सीओ का पदस्थापन विभागीय स्तर से किया गया या नहीं ?
*एसआईटी रिपार्ट में सरकार से क्या कहा था*
रिपोर्ट में कहा गया है कि 21 फरवरी 2015 को एनटीपीसी के सीएमडी के हस्ताक्षर से हजारीबाग जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ हुई बैठक प्रोसिडिंग तैयार हुई. इसमें लिखा गया कि अवैध कब्जाधारियों को मुआवजा देने का प्रावधान नहीं है. अवैध कब्जा करनेवाले बहुत ही गरीब और पिछड़े हैं. उनका जीवन यापन इसी जमीन पर निर्भर है. एनटीपीसी के पास ऐसे 2769 लोगों की सूची है. पर यह सूची कहां से और किस सर्वे का माध्यम से मिली है, यह स्पष्ट नहीं है. इनमें 2000 लोग ऐसे हैं जिनके पास औसतन दो ही डिसमिल जमीन है. दो डिसमिल जमीन पर ही किसी परिवार का जीवन यापन निर्भर होना संभव नहीं है. एनटीपीसी की सूची में ऐसे जमीन मालिकों के भी नाम हैं, जिनके पास सिर्फ 20 वर्ग फुट खेती की जमीन है. इन आंकड़ों को देखते हुए देवाशीष गुप्ता ने सरकार को सुझाव दिया था कि इस मामले को कोयला और ऊर्जा मंत्रालय के पास ले जाया जाये और इसकी जांच करायी जाये. पर राज्य सरकार ने उनकी पूरी रिपोर्ट जिला प्रशासन के पास यह कहते हुए भेज दी कि प्रशासन इस मामले शामिल दोषी सरकारी अधिकारियों को चिह्नित कर आवश्यक कार्रवाई करे.