झारखंड में नए आलू के नाम पर मिलावटखोरी का गोरखधंधा चल रहा है।
पुराने आलू को केमिकल, बालू और मिट्टी मिलाकर नए आलू की शक्ल दी जा रही है। इसे बाजारों में नया आलू कहकर धड़ल्ले से बेचा जा रहा है। कृषि वैज्ञानिकों और चिकित्सकों का कहना है कि नए आलू के नाम पर जायके का शौक लोगों को बीमार, बहुत बीमार बना सकता है। छानबीन में खुलासा हुआ है कि प्रतिवर्ष सितंबर-अक्टूबर माह से यह गोरखधंधा शुरू हो जाता है। अब समझिए कि यह कैसे किया जाता है।
कुछ इस तरह बनाया जाता है नया आलू
दैनिक अखबार के एक पत्रकार की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में पुराने आलू को नए आलू में तब्दील करने के गोरखधंधे का पूरा कच्चा-चिट्ठा खोला गया है। दरअसल, व्यापारी पहले पुराने आलू को कोल्ड स्टोरेज से निकालते हैं। फिर से जमीन खोदकर पानी में डाल दिया जाता है। पानी में पीला या लाल गेरुआ मिट्टी घोल दी जाती है। इसके बाद इसमें अभ्रक मिली हुई बालू युक्त मिट्टी डाली जाती है। इसमें फिर तेजाब डाला जाता है। इस मिश्रण में आलू को अच्छी तरह से मिलाया जाता। तेजाब की वजह से आलू की ऊपरी परत छिल जाती है। वहीं, मिट्टी और बालू उसमें चिपक जाता है। इतना करने के बाद पुराना आलू बिलकुल नए आलू की तरह दिखने लगता है। इसे बाजारों में धड़ल्ले से नया आलू कहकर बेचा जाता है।
15 नवंबर के बाद ही आता है मार्केट में नया आलू
कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि नए आलू की पहली खेप दरअसल, 15 नवंबर के बाद ही आती है। सितंबर माह में तो इसकी बुआई ही की जाती है, ऐसे में अक्टूबर में नया आलू आना संभव नहीं है। वैज्ञानिकों ने कहा कि यह खाना खतरे से खाली नहीं है। यह ना केवल पेट बल्कि शरीर के अन्य अंगों को भी गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। हजारीबाग में छानबीन करने से पता चला कि यहां कई प्रखंडों में धड़ल्ले से केमिकल युक्त पुराने आलू को नया आलू कहकर बेचा जा रहा है।
*चिकित्सकों ने गंभीर चिकित्सीय खतरे की चेतावनी दी*
कृषि वैज्ञानिकों, किसानों और चिकित्सकों ने एकमत से कहा है कि दरअसल, इस समय सब्जियां महंगी मिलती है। नई सब्जियां मार्केट में उतनी ज्यादा मात्रा में नहीं आ रही। पुराने आलू में मीठापन आ जाता है। ऐसे में लोगों के नए आलू खाने की तलब की वजह से यह गोरखधंधा कब फल-फूल रहा है। चिकित्सकों ने लोगों से अपील की है कि वे तत्काल केमिकल युक्त नया आलू खाना बंद कर दें।