बालू पर विशेष: झारखंड में आज शाम 6 बजे से बालू उठाव पर प्रतिबंध, 15 अक्तूबर तक स्टॉक से होगी आपूर्ति
फाइल फोटो
रांची : झारखंड में बालू खनन को लेकर बड़ी खबर सामने आई है। सोमवार, 10 जून 2025 की शाम 6 बजे से राज्य के सभी नदी घाटों से बालू उठाव पर पूर्ण प्रतिबंध लागू हो जाएगा। यह रोक आगामी 15 अक्तूबर 2025 तक प्रभावी रहेगी।
यह निर्णय राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के सालाना निर्देश के तहत लिया गया है, जो पर्यावरण संरक्षण और मानसून के दौरान नदी घाटों की पारिस्थितिकी को बनाए रखने के उद्देश्य से लिया जाता है। इस अवधि में नदी तटों से बालू खनन पर सख्त पाबंदी होती है।
प्रभाव: निर्माण कार्यों पर असर, लेकिन स्टॉक से राहत
झारखंड में निर्माण कार्यों के लिए बालू एक प्रमुख संसाधन है, और प्रतिबंध के दौरान निर्माण कंपनियों व आम जनता को चिंता हो सकती है। हालांकि, राहत की बात यह है कि झारखंड राज्य खनिज विकास निगम लिमिटेड (JSMDC) के अनुसार, उनके पास लगभग 50 लाख क्यूबिक फीट बालू का स्टॉक उपलब्ध है। इस स्टॉक से ही आपूर्ति की जाएगी।
> JSMDC का बयान: “प्रतिबंध की अवधि में जनता को पर्याप्त मात्रा में बालू मिल सके, इसके लिए सभी ज़रूरी प्रबंध किए जा चुके हैं।”
सिस्टम की स्थिति: 444 घाटों में से सिर्फ 32 चालू
राज्य सरकार ने बालू खनन के लिए 444 श्रेणी-2 घाटों को चिन्हित किया है। इनमें से अब तक केवल 68 घाटों को ही पर्यावरणीय स्वीकृति (EC) प्राप्त हो सकी है।
इनमें भी सिर्फ 32 घाट ही वर्तमान में परिचालित हैं, जिनमें 28 घाट सरकारी और 4 निजी संचालन में हैं।
NGT की भूमिका और पर्यावरणीय संवेदनशीलता
NGT के निर्देश के मुताबिक हर साल मानसून के दौरान नदी घाटों से बालू खनन पर रोक अनिवार्य है। इसका उद्देश्य:
नदी की धारा और जैव विविधता की रक्षा
तटीय क्षेत्रों के कटाव को रोकना
भूजल पुनर्भरण को सुरक्षित करना
विशेषज्ञ राय:
पर्यावरणविदों के अनुसार यह फैसला लंबी अवधि में नदियों के स्वास्थ्य और स्थिरता के लिए बेहद जरूरी है, लेकिन इसके समानांतर वैकल्पिक आपूर्ति चैन विकसित करना भी उतना ही आवश्यक है।
निष्कर्ष
झारखंड में बालू खनन पर प्रतिबंध एक नियमित पर्यावरणीय अभ्यास है, लेकिन यह राज्य के निर्माण क्षेत्र के लिए एक चुनौतीपूर्ण दौर भी होता है।
राज्य सरकार और JSMDC की जिम्मेदारी है कि वह इस अंतराल में पारदर्शी, सुगम और सुलभ आपूर्ति सुनिश्चित करें, ताकि आम जनता व व्यवसायिक गतिविधियों पर असर न्यूनतम हो।