करमा धरमा से जुड़ी कई सारी कहानियां प्रचलित हैं। उनमें से एक है……
करम पूजा की जो कथा है वह दो भाइयों की है। माना जाता है कि करमा और धरमा दो भाई थे। दोनों खूब मेहनती व दयावान थे। कुछ दिन बाद करमा का विवाह हो गया। उसकी पत्नी “अधर्मी” दूसरे को परेशान करने वाले विचारों की थी।
यहां तक कि वह धरती मां के ऊपर ही चावल का गर्म पानी (माड़) गिरा दिया करती थी। जिसे देख कर्म को बहुत दुःख हुआ। यह देख वह धरती मां की पीड़ा से वह बहुत नाराज हुआ और नाराज होकर घर से चला गया।
उसके जाते ही सभी के भाग्य फूट गए। दुःख के दिन आ गए और वहां के लोग दुःखी रहने लगे। लोगों की यह पीड़ा को देखकर भाई धर्मा को खोजने निकल पड़ा।
कुछ दूर चलने पर उसे प्यास लग गई, आस पास कुछ न था, दूर में एक नदी दिखाई दिया। पास जाने पर उसने देखा कि उसमे पानी नहीं है। नदी ने धर्मा से कहा कि “जब से कर्म भाई यहां से गए हैं तब से हमारे कर्म फूट गए हैं, यहां का पानी सुख गया है।” यह नदी ने धर्मा से कर्मा को कहने को कहा।
कुछ दूर जाने पर एक आम का पेड़ मिला उसके सारे फल सड़ हुए थे। उसने भी धर्मा से कहा कि जब से कर्मा गए हैं तब से हमारा फल ऐसे ही बर्बाद हो जाता है। और आम के पेड़ ने यह भी कहा की अगर कर्मा भाई मिले तो उनसे यह सब बताइएगा और इसका क्या निवारण क्या है यह भी पूछ कर बताइएगा।
धर्मा वहां से आगे बढ़ा, आगे बढ़ने पर उसे एक वृद्ध व्यक्ति मिला, उसने धर्मा को बताया कि जब से कर्मा यह से गया है उनके सर से बोझ तब तक नहीं उतरते जब तक 3-4 लोग उसे न उतार देते। वृद्ध व्यक्ति ने भी कर्मा से इसका निवारण का उपाय जानने को कहा।
आगे बढ़ने पर धर्मा को एक महिला मिली जो कर्मा से यह जानने के लिए बोलीं की जब से कर्मा गए है तब से खाना बने के बाद बर्तन हाथ से चिपक जाते हैं तो इसके लिए क्या उपाय करें।
धर्मा आगे चल पड़ा, चलते-चलते रेगिस्तान में जा पहुंचा वहां उसने देखा कि कर्मा धूप व गर्मी से परेशान है। उसके शरीर पर फोड़े हो गए हैं, वह व्याकुल हो रहा है।
धर्मा से उसकी हालत देखी नहीं गई। और उसने कर्मा से आग्रह किया की वह घर वापस चले। तो इसका जवाब कर्मा ने दिया कि मैं उस घर कैसे जाऊं जहां मेरी पत्नी जमीन पर माड़ (चावल का गर्म पानी) फेंक देती है। तब धर्मा ने वचन दिया की आज के बाद कोई भी महिला जमीन पर माड़ नही फेकेंगी।
फिर दोनों भाई घर की ओर वापस चले तो सबसे पहले वह महिला मिली तो उससे कर्म ने कहा कि तुमने किसी भूखे को खाना नहीं खिलाया था इसलिए तुम्हारे साथ ऐसा हुआ। आगे से ऐसा कभी मत करना सब ठीक हो जायेगा।
अंत में कर्मा नदी पर पहुंचा तो उससे कहा कि तुमने कभी किसी को साफ पानी पीने के लिए नहीं दिया। आगे से कभी किसी को गंदा पानी मत पिलाना यदि तुम्हारे पास कोई आए तो उसे साफ पानी पिलाना।
इस प्रकार उसने सभी को कर्म बताते हुए घर आया और पोखर में कर्म/करम का डाल लगाकर पूजा किया। उसके आते ही पूरे इलाके में खुशहाली लौट आई और सभी आनंद से रहने लगे।
कहते हैं कि उसी को याद कर आज करमा पर्व मनाया जाता है।