Sunday, November 24, 2024

संत गुरु रविदास जी की 610 वीं जयंती पर उनके आदर्शों व कार्यों को लोगों का नमन

संत गुरु रविदास जी की 610 वीं जयंती पर उनके आदर्शों व कार्यों को लोगों का नमन

वैसे तो हमारे देश भारत में सदियों से अनेक महान संतो ने जन्म लेकर इस भारतभूमि को धन्य किया है जिसके कारण भारत को विश्वगुरु कहा जाता है और जब जब हमारे देश में ऊचनीच भेदभाव, जातीपाती, धर्मभेदभाव अपने चरम अवस्था पर हुआ है तब तब हमारे देश भारत में अनेक महापुरुषों ने इस धरती पर जन्म लेकर समाज में फैली बुराईयों, कुरूतियो को दूर करते हुए अपने बताये हुए सच्चे मार्ग पर चलते हुए भक्ति भावना से पूरे समाज को एकता के सूत्र में बाधने का काम किया है इन्ही महान संतो में संत गुरु रविदास जी का भी नाम आता है जो की एक 15वी सदी के एक महान समाज सुधारक, दार्शनिक कवि और धर्म की भेदभावना से ऊपर उठकर भक्ति भावना दिखाते है तो आईये जानते है ऐसे महान संत गुरु रविदास जी के जीवन के बारे में जिनके जीवन से हमे धर्म और जाती से उठकर समाज कल्याण की भावना की सीख मिलती है।

वैसे तो महान संत गुरु रविदास के जन्म से जुडी जानकारी नही मिलती है लेकिन साक्ष्यो और तथ्यों के आधार पर महान संत गुरु रविदास का जन्म तथ्यों के आधार पर 1377 के आसपास माना जाता है हिन्दू धर्म महीने के अनुसार महान संत गुरु रविदास का जन्म माघ महीने के पूर्णिमा के दिन माना जाता है और इसी दिन हमारे देश में महान संत गुरु रविदास की जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।

नाम – गुरु रविदास जिन्हें रैदास के नाम से भी जाना जाता है।

जन्म तारीख – 1377 इसवी से 1398 के बीच माना जाता है।

जन्मस्थान – वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गाँव।

पिता – संतो़ख दास (रग्घु)।

माता – कलसा देवी।

कार्यक्षेत्र – निर्गुणसंत और समाज सुधारक, कविताओ के माध्यम से सामाजिक सीख।

मृत्यु – 1540 इसवी (वाराणसी)।

रविदास जी को रैदास जी के नाम से भी जाना जाता है। इनके माता-पिता चर्मकार थे। इन्होंने अपनी आजीविका के लिए पैतृक कार्य को अपनाया लेकिन इनके मन में भगवान की भक्ति पूर्व जन्म के पुण्य से ऐसी रची बसी थी कि आजीविका को धन कमाने का साधन बनाने की बजाय संत सेवा का माध्यम बना लिया। संत और फकीर जो भी इनके द्वार पर आते उन्हें बिना पैसे लिये अपने हाथों से बने जूते पहनाते। इनके इस स्वभाव के कारण घर का खर्च चलाना कठिन हो रहा था। इसलिए इनके पिता ने इन्हें घर से बाहर अलग रहने के लिए जमीन दे दिया। जमीन के छोटे से टुकड़े में रविदास जी ने एक कुटिया बना लिया। जूते बनाकर जो कमाई होती उससे संतों की सेवा करते इसके बाद जो कुछ बच जाता उससे अपना गुजारा कर लेते थे। एक दिन एक ब्राह्मण इनके द्वार आये और कहा कि गंगा स्नान करने जा रहे हैं एक जूता चाहिए। इन्होंने बिना पैसे लिया ब्राह्मण को एक जूता दे दिया। इसके बाद एक सुपारी ब्राह्मण को देकर कहा कि, इसे मेरी ओर से गंगा मैया को दे देना। ब्राह्मण रविदास जी द्वारा दिया गया सुपारी लेकर गंगा स्नान करने चल पड़ा। गंगा स्नान करने के बाद गंगा मैया की पूजा की और जब चलने लगा तो अनमने मन से रविदास जी द्वारा दिया सुपारी गंगा में उछाल दिया। तभी एक चमत्कार हुआ गंगा मैया प्रकट हो गयीं और रविदास जी द्वारा दिया गया सुपारी अपने हाथ में ले लिया। गंगा मैया ने एक सोने का कंगन ब्राह्मण को दिया और कहा कि इसे ले जाकर रविदास को दे देना। ब्राह्मण भाव विभोर होकर रविदास जी के पास आया और बोला कि आज तक गंगा मैया की पूजा मैने की लेकिन गंगा मैया के दर्शन कभी प्राप्त नहीं हुए। लेकिन आपकी भक्ति का प्रताप ऐसा है कि गंगा मैया ने स्वयं प्रकट होकर आपकी दी हुई सुपारी को स्वीकार किया और आपको सोने का कंगन दिया है। आपकी कृपा से मुझे भी गंगा मैया के दर्शन हुए। इस बात की ख़बर पूरे काशी में फैल गयी। रविदास जी के विरोधियों ने इसे पाखंड बताया और कहा कि अगर रविदास जी सच्चे भक्त हैं तो दूसरा कंगन लाकर दिखाएं। विरोधियों के कटु वचनों को सुनकर रविदास जी भक्ति में लीन होकर भजन गाने लगे। रविदास जी चमड़ा साफ करने के लिए एक बर्तन में जल भरकर रखते थे। इस बर्तन में रखे जल से गंगा मैया प्रकट हुई और दूसरा कंगन रविदास जी को भेंट किया। रविदास जी के विरोधियों का सिर नीचा हुआ और संत रविदास जी की जय-जयकार होने लगी।

तब से यह कहावत प्रचलित हो गयी – मन चंगा तो कठौती में गंगा

अर्थात यदि हमारा मन शुद्ध है तो हमारे हृदय में ही ईश्वर निवास करते है

रविदास जी हमेसा से ही जातिपाती के भेदभाव के खिलाफ थे और जब भी मौका मिलता वे हमेसा सामाजिक कुरूतियो के खिलाफ हमेसा आवाज़ उठाते रहते थे रविदास जी के गुरु रामानन्द जी थे जिनके संत और भक्ति का प्रभाव रविदास जी के उपर पड़ा था इसी कारण रविदास जी को भी मौका मिलता वे भक्ति में तल्लीन हो जाते थे जिसके कारण रविदास जी से बहुत सुनना पड़ता था और शादी के बाद तो जब रविदास जी अपने बनाये हुए जूते को किसी आवश्यकमन को बिना मूल्य में ही दान दे देते थे जिसके कारण इनका घर चलाना मुश्किल हो जाता था जिसके कारण रविदास जी इनके पिता ने अपने परिवार से अलग कर दिया था फिर भी रविदास जी ने कभी भी भक्तिमार्ग को नही छोड़ा।

जिसके बाद रविदास जी ने यह पंक्ति कही
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अब कैसे छूटे राम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी॥
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा॥
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती॥
प्रभु जी, तुम मोती, हम धागा जैसे सोनहिं मिलत सोहागा॥
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै ‘रैदासा’॥

अर्थात रविदास जी ईश्वर को अपना अभिन्न अंग मानते थे और ईश्वर के बिना जीवन की कल्पना भी नही करते थे जिसका वर्णन हमे इस पंक्ति में दिखाई देता है

रविदास जी जाति व्यवस्था के सबसे बड़े विरोधी थे उनका मानना था की मनुष्यों द्वारा जातिपाती के चलते मनुष्य मनुष्य से दूर होता जा रहा है और जिस जाति से मनुष्य मनुष्य में बटवारा हो जाये तो फिर जाति का क्या लाभ ?

जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।

रविदास जी के समय में जाति भेदभाव अपने चरम अवस्था पर था जब रविदास जी के पिता की मृत्यु हुई तो उनका दाहसंस्कार के लिए लोगो का मदद मागने पर भी नही मिलता है लोगो का मानना था की वे शुद्र जाति के है और जब उनका अंतिम संस्कार गंगा में होगा तो इस प्रकार गंगा भी प्रदूषित हो जायेगी जिसके कारण कोई भी उनके पिता के दाहसंस्कार के लिए नही आता है तो फिर रविदास जी ईश्वर का प्रार्थना करते है तो गंगा में तूफान आ जाने से उनका पिता की मृत शरीर गंगा में विलीन हो जाती है और तभी से मन जाता है काशी में गंगा उलटी दिशा में बहती है

रविदास जी की महानता और भक्ति भावना की शक्ति के प्रमाण इनके जीवन के अनेक घटनाओ में मिलती है है जिसके कारण उस समय का सबसे शक्तिशाली राजा मुगल साम्राज्य बाबर भी रविदास जी के नतमस्तक था और जब वह रविदास जी से मिलता है तो रविदास जी बाबर को दण्डित कर देते है जिसके कारण बाबर का हृदय परिवर्तन हो जाता है और फिर सामाजिक कार्यो में लग जाता है

रविदास जी के जीवन में ऐसे अनेको तमाम घटनाएं है जो आज भी हमे जातीपाती की भावना से उपर उठकर सच्चे मार्ग पर चलते हुए समाज कल्याण का मार्ग दिखाती है।
भले ही गुरु रविदास जी आज हमारे समाज के बीच नही है लेकिन उनके द्वारा बताये गये उपदेश और भक्ति की भावना हमे समाज कल्याण का मार्ग दिखाते है महान संत गुरु रविदास ने अपने जीवन के व्यवहारों से यह प्रमाणित कर दिया था की इन्सान चाहे किसी भी कुल या जाति में जन्म ले ले लेकिन वह अपने जाति और जन्म के आधार पर कभी भी महान नही बनता है जब इन्सान दुसरो के प्रति श्रद्धा और भक्ति का भाव रखते हुए लोगो के प्रति अपना जीवन न्योछावर कर दे वही इन्सान सच्चे अर्थो में महान होता है और ऐसे ही लोग युगों युगों तक लोगो के दिलो में जिन्दा रहते है।
सौजन्य:-शोशल मीडिया

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